जब लंबे इंतजार के बाद आपका नन्हा-मुन्ना आपकी गोद में आता है, तो वह खुशी दुनिया की सभी खुशियों से ऊपर होती है। उसकी मुस्कान, नन्हा-सा शरीर, उससे जुड़ी हर बात आपके मन को भाती है। उसके स्वागत को लेकर आप बेहद उत्सुक रहते हैं, लेकिन इसके साथ ही बच्चे की देखरेख से जुड़ी चिंता भी मन में आने लगती है। बच्चे को कितना दूध पिलाना है, कैसे नहलाना है, उठाना कैसे है, मालिश कैसे करनी है आदि सवाल मन में आना लाजमी हैं। कुछ साल तक शिशु की खास देखभाल की जरूरत होती है

नवजात शिशु की देखभाल

स्तनपान

हर बच्चा अलग होता है और सभी की जरूरतें भी अलग होती हैं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि बच्चा कितना बड़ा है और उसे कितने दूध की जरूरत है। कुछ दिनों के शिशु को हर एक से 2 घंटे में स्तनपान करवाना जरूरी होता है। इस समय वह दूध को चूसना और निगलना सीखता है। बच्चे को बार-बार दूध पिलाने से इसका अभ्यास होता है। इसके साथ ही जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, उसका पेट और दूध की जरूरत भी बढ़ने लगती है। कुछ  महीने के बच्चे को हर चार से पांच घंटे में दूध पिलाना जरूरी होता है। इसके बाद जब बच्चा छह महीने का हो जाता है, तो आप बच्चे को दूध छुड़ाने वाले  आहार खिलाना शुरू कर सकते हैं।

डकार दिलाना

अगर बच्चे को दूध पिलाने के बाद ठीक तरह से डकार न दिलवाई जाए, तो उसे गैस या पेट में मरोड़ की समस्या हो सकती है। इससे पेट में दर्द उठ सकता है। ठीक तरह से डकार न दिलाने पर शिशु मुंह से दूध बाहर भी निकाल सकता है। इस कारण शिशु को सही तरीके से डकार दिलवाना जरूरी है। इसके लिए उसकी पीठ अपनी तरफ करके, उसे अपने घुटने पर बैठाएं और उसके सिर को आगे से पकड़ें। इस दौरान उसकी कमर को आगे की ओर थोड़ा सा झुकाएं और पीठ पर थपथपाएं। इस पोजीशन से उसके पेट पर दबाव पड़ेगा और उसे डकार आ जाएगी। इसके अलावा, शिशु को छाती से लगाकर व पेट के बल गोदी में लेटाकर भी डकार दिलाई जा सकती है।

नाभिरज्जु के बचे हुए भाग की देखभाल

जब डिलीवरी के बाद गर्भनाल को काटकर शिशु को मां से अलग किया जाता है, तो गर्भनाल का छोटा-सा हिस्सा, जिसे ठूंठ कहते हैं, बच्चे की नाभि पर रह जाता है। बच्चे के जन्म के 5 से 15 दिन के बीच यह हिस्सा भी सूखकर गिर जाता है। हालांकि, जब तक वह हिस्सा गिर नहीं जाता, तब तक शिशु के ठूंठ की देखभाल करना जरूरी होता है। ऐसा न करने से बच्चे को संक्रमण हो सकता है। ठूंठ के आसपास के हिस्से को पानी से अच्छी तरह साफ करें और फिर साफ कपड़े से सुखाएं। बच्चे के डायपर को ठूंठ से नीचे बांधें और उस हिस्से को खुला रखें। इस हिस्से को हमेशा सूखा रखें। किसी भी तरह का असामान्य बदलाव दिखने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

डायपर से जुड़ी देखभाल

नवजात शिशु की देखभाल में डायपर महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। अगर बच्चा अच्छी तरह दूध पी रहा है, तो वह बार बार डायपर गीला कर सकता है। ऐसे में अगर समय रहते डायपर न बदला जाए, तो उसे डायपर रैश हो सकते हैं। इसमें बच्चे के नितंब के आसपास की त्वचा लाल, जलनशील और पपड़ीदार हो सकती है। इससे बचने के लिए बच्चे के गीले डायपर को जितनी जल्दी हो सके बदलें। बच्चे के गुप्तांग के हिस्से को साफ व सूखा रखें और हर दो घंटे में या शौच करने के बाद डायपर बदलें। डायपर बदलते समय उसे गर्म पानी से साफ करके, अच्छी तरह से पोंछकर ही नया डायपर पहनाएं।

शिशु को नहलाना

नवजात शिशु की त्वचा बहुत नाजुक और कोमल होती है। इस कारण उन्हें नहलाते समय बहुत सावधानी बरतना जरूरी है। नहलाने से न सिर्फ उनके शरीर के कीटाणु दूर होते हैं, बल्कि बच्चा तनाव मुक्त होकर आरामदायक हो जाती है। अपने शिशु को आप हफ्ते में दो से तीन बार नहला सकते हैं और इसके लिए शिशु को नहलाने का सही तरीका अपनाना जरूरी है। नवजात शिशु को आप गीले कपड़े या स्पंज से साफ करके स्पंज बाथ दे सकते हैं। आप चाहें तो उन्हें बाथ टब में भी नहला सकते हैं, लेकिन इस दौरान सभी तरह की सावधानियां बरतना जरूरी है, जैसे पानी गुनगुना हो और साबुन या शैम्पू बच्चे की आंखों में न जाए आदि।

अपने नवजात शिशु को कैसे पकड़ें

नवजात शिशु को सही ढंग से पकड़ना सबसे जरूरी होता है। शिशु का शरीर बहुत नाजुक होता है और जरा-सी लापरवाही के कारण भारी मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में जरूरी है कि शिशु को अपनी बाहों में बहुत सावधानी के साथ उठाया जाए। इस दौरान उसके सिर और गर्दन के नीचे हाथ रख कर सहारा दिया जाए। वहीं, बच्चे को हवा में उछालने और जोर से हिलाने आदि से बचें। ऐसा करने से शिशु को गंभीर समस्याएं हो सकती हैं।

नवजात शिशु की मालिश करना

नवजात शिशु की मालिश करने की प्रथा हमारे यहां सदियों से चली आ रही है। शिशु की मालिश के जुड़े कई शोध भी उपलब्ध हैं, जिनके अनुसार मालिश बच्चे का तनाव कम करने में मदद करती है। वहीं, मालिश बच्चे का वजन बढ़ाने, दूध पचाने और मानसिक विकास में भी मदद करती है। इसके लिए आप स्टेप-बाय-स्टेप शिशु की मालिश की तकनीक अपना सकते हैं। शिशु की मालिश के लिए जैतून का तेल, नारियल तेल या अन्य बेबी ऑयल का उपयोग किया जा सकता है।

अपने नवजात शिशु को संभालना

इतने छोटे बच्चे को संभालना, खासकर पहली बार माता-पिता बनने वाले कपल के लिए थोड़ा मुश्किल हो सकता है। ऐसे में आप कुछ आम बातों का ध्यान रख सकते हैं, जैसे – शिशु को छूने से पहले अपने हाथों को सैनीटाइज करें। यह समझने की कोशिश करें कि बच्चा क्यों रो रहा है। ध्यान रखें कि बच्चे को ज्यादा ठंड या गर्मी न लग रही हो, वह भूखा न हो, उसका डायपर गीला न हो, उसके आसपास ऐसा कुछ न हो रहा हो जिससे वो चिड़चिड़ा होने लगे। इसके साथ ही यह भी ध्यान रखें कि आप उसका मन बहलाने के लिए उससे बातें करें, उसे एक स्थिति में ज्यादा देर तक सुलाए न रखें आदि।

शिशु को सुलाना

यह जानकर शायद आपको हैरानी होगी कि नवजात शिशु 24 में से 16 घंटे सोता है। अक्सर वो दो से चार घंटों तक लगातार सो सकते हैं, लेकिन पूरी रात सोना उनके लिए मुमकिन नहीं हो पाता। बच्चों का पेट बहुत छोटा होता है और दूध बहुत जल्दी पच जाता है, जिस कारण उन्हें हर 2 घंटे (लगभग) में दूध पिलाना जरूरी होता है। अपने बच्चे को सुलाने के लिए आप कुछ उपाय अपना सकते हैं, जैसे उन्हें हर रोज एक समय पर सुलाने की आदत डलवाना। सुलाने से पहले उनकी मालिश करके नहलाना और हल्का म्यूजिक चलाना, जिससे बच्चा रिलैक्स हो जाए। सुरक्षा के नजरिए से बच्चे को हमेशा पीठ के बल सुलाएं और उसके चेहरे को खुला रखें।

शिशु के नाखून काटना  

नवजात शिशु के नाखून बहुत मुलायम होते हैं, लेकिन इसके बावजूद बच्चे इनसे खुद को खरोंच लगा सकते हैं। इनके नाखून इतनी जल्दी बढ़ते हैं कि आपको हफ्ते में कम से कम एक बार शिशु के नाखून काटना जरूरी होता है। इस कारण यह जरूरी है कि बच्चे के नाखून छोटे और साफ रखे जाएं। इसका ध्यान रखने के लिए बच्चे को नहलाते समय उसके नाखूनों को भी अच्छी तरह साफ करें। इसके अलावा, बच्चों के नाखून के लिए आने वाली कैंची से भी आप उनके नाखून काट सकते हैं ।

 

        प्रियंवदा दीक्षित, फूड फॉर हील  ‌‌                             (क्वालीफाईड डायटीशियन, आगरा)

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