शून्य मुद्रा को शून्यता का भाव भी कहा जाता है। अंग्रेजी में शून्य का संबंध खुलेपन, ख़ालीपन या विशालता से है। शून्य, एक संस्कृत शब्द, का उपयोग आकाश या स्वर्ग के संदर्भ में भी किया जा सकता है। इस प्रकार, शून्य मुद्रा को स्वर्ग मुद्रा के रूप में भी जाना जाता है। शून्य मुद्रा का अभ्यास मध्यमा उंगली और अंगूठे का उपयोग करके किया जाता है।
कैसे करें शून्य मुद्रा?
मुद्रा करते समय आरामदायक कपड़े पहनने की सलाह दी जाती है। शून्य मुद्रा करने के चरण इस प्रकार हैं।
1.वज्रासन (घुटने टेकने की मुद्रा) या पद्मासन (कमल मुद्रा) जैसी आरामदायक स्थिति में बैठें।
2.वज्रासन एक ऐसी स्थिति है जहां आप अपने पैर की उंगलियों और टखनों को एक सीध में रखते हुए फर्श पर घुटने टेकते हैं और सांस छोड़ते हुए अपने पैरों के पीछे बैठते हैं।
3.पद्मासन एक ऐसी स्थिति है जिसमें एक व्यक्ति क्रॉस-लेग्क्रॉस-लेग्स तरीके से बैठता है और उनके पैर विपरीत जांघों पर रखे जाते हैं।
4.अपने सिर, गर्दन और कंधों को आराम दें।
5.अपनी रीढ़ की हड्डी को यथासंभव सीधा रखें।
6.अब अपने दोनों हाथों को अपने-अपने घुटनों पर रखें।
7.सुनिश्चित करें कि आपकी दोनों हथेलियाँ ऊपर की ओर हों।
8.अब, अपनी मध्यमा उंगली को अपनी हथेली की ओर इस तरह मोड़ें कि आपकी मध्यमा उंगली की नोक आपके अंगूठे के आधार को छूए।
9.इसके बाद, अपने अंगूठे को अपनी मध्यमा उंगली के ऊपर रखें।बाकी अंगुलियों को सीधा रखें।
10.अपनी आंखें बंद रखें और अपनी सांसों पर ध्यान केंद्रित करें।इस मुद्रा को दोनों हाथों से एक साथ करना चाहिए।
कितनी देर करनी है ये मुद्रा
5-30 मिनट के लिए प्रतिदिन दो से तीन बार शून्य मुद्रा का अभ्यास करें।
शून्य मुद्रा के लाभ
1.शून्य मुद्रा श्रवण हानि वाले लोगों की मदद करती है
ऐसा माना जाता है कि यह कानों में ऊर्जा चैनलों को उत्तेजित करता है, जो श्रवण प्रणाली के कामकाज को बेहतर बनाने और कान के दर्द को कम करने में मदद कर सकता है। यह भी माना जाता है कि शून्य मुद्रा का अभ्यास प्रतिरक्षा को बढ़ावा देता है और रक्तचाप को नियंत्रित करता है, जो सुनने की हानि वाले लोगों के लिए फायदेमंद हो सकता है।
2.शून्य मुद्रा मनोभ्रंश(demnisia) को प्रबंधित करने में मदद करती है
3.थायराइड के विकारों को रोकने में
माना जाता है कि शून्य मुद्रा करने से शरीर में ऊर्जा का प्रवाह गले के चक्र पर पुनर्निर्देशित होता है, जो थायरॉयड ग्रंथि से जुड़ा होता है। यह थायरॉइड ग्रंथि को संतुलित करने और थायरॉयड विकारों को रोकने में मदद करता है।
4.मोशन सिकनेस या चक्कर को रोकने में
यह मुद्रा कान के पास की नसों को सीधे उत्तेजित करके मोशन सिकनेस और चक्कर को कम करने में मदद करती है।
5.शून्य मुद्रा आपके शरीर के भीतर अंतरिक्ष तत्व को कम करके आपके शरीर के किसी भी हिस्से में झुनझुनी या सुन्नता को कम करने में भी सहायक है।
6.हृदय रोगी से राहत दिलाने में
अंगूठे के आधार के पास वाले स्थान पर एक एक्यूप्रेशर बिंदु होता है जिसके माध्यम से रक्त हृदय में प्रवेश करता है। शून्य मुद्रा करने से एट्रियम के प्रदर्शन में सुधार होगा, जिससे आपको कई हृदय रोगों से राहत मिलेगी।
शून्य मुद्रा करते समय कुछ सावधानियां बरतनी जरूरी है
1.गर्भवती महिलाओं को शून्य मुद्रा का अभ्यास सावधानी के साथ करना चाहिए, इससे शरीर में गर्मी बढ़ सकती है और इसे लंबे समय तक नहीं करना चाहिए। जिन लोगो को आर्थराइटिस है उन्हे इसे बचना चाहिए ।हाल ही अगर किसी की सर्जरी हुई हो तो उसे में इसके अभ्यास से बचना चाहिए।
2.अपने अंगूठे पर बहुत अधिक दबाव डालने से बचें।
3.अगर आप कमजोरी महसूस कर रहे हैं तो शून्यमुद्रा करने से बचें।
4.इस मुद्रा के अत्यधिक अभ्यास से आपके शरीर के आकाश तत्व में कमी आती है।
अगर आप शून्य मुद्रा से जुड़े किसी तरह के कोई सवाल का जवाब जानना चाहते हैं, तो योगा एक्सपर्ट से समझना बेहतर होगा। शून्य मुद्रा के साथ-साथ किसी भी आसनों के लिए उससे जुड़े जानकारों से मुद्रा या योगासन करने की प्रक्रिया को अच्छे से समझना अनिवार्य है। ऐसा करने से आपको विशेष फायदा होगा।
दिव्या सिंह (वेलनेस कोच एवं रेकी हीलर, पटना)