आयुर्वेद चिकित्सा : भारतीय चिकत्सा के मुख्य चार प्रकार है जिसे भारतीय चिकित्सा बोर्ड ने अधिकार दिया है जैसे की1 एलोपैथ 2 आयुर्वेद 3 होमियोपैथ 4 यूनानी एवं सिद्धा ।।।जिसमे आयुर्वेद एक प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति है जो स्वास्थ्य और दिनचर्या की दृष्टि से जानी जाती है। यह चिकित्सा, पोषण, और जीवनशैली के संतुलन पर केंद्रित है और विभिन्न प्राकृतिक तत्वों, आहार, और योग का उपयोग करती: मुख्यत:आयुर्वेद तीन सिद्धांतो पर कार्य करता है वो है वात, कफ, और पित्त ।।।आयुर्वेद में तीनों दोष हैं जो शरीर के स्वास्थ्य को संतुलित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
1. **वात दोष ** यह दोष वायु तत्व से संबंधित है और शरीर की गतिविधियों, संवेग, और स्थिति को नियंत्रित करता है। अगर वात असंतुलित हो जाता है, तो व्यक्ति में अस्तायी समस्याएं हो सकती हैं।
2. **कफ दोष** कफ पृथ्वी और जल तत्व से संबंधित है और शरीर की स्थिरता, ऊर्जा शोधन, और स्थैतिकता को नियंत्रित करता है। अत्यधिक कफ उत्पन्न होने पर व्यक्ति में जल्दी थकान, भारीपन, और वजन बढ़ सकता है।
3. **पित्त दोष ** पित्त आग्नेय तत्व से संबंधित है और शरीर की ऊर्जा, तापमान, और प्रज्ञान को नियंत्रित करता है। असंतुलित पित्त व्यक्ति में जिगर की समस्याएं, तेज गुस्सा, और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएं पैदा कर सकता है।
आयुर्वेद में इन तीनों दोषों की संतुलन में रखने के लिए आहार, विचार, और आचार्य को बनाए वात, कफ, और पित्त आयुर्वेद में तीनों दोष हैं जो शरीर के स्वास्थ्य को संतुलित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
डॉ. विनोद कश्यप, डायटीशियन एवं नेत्र रोग विशेषज्ञ (सचिव साथी वेलफेयर केयर सोसायटी, गोरखपुर)