माँ बाप बनना अपने आप में एक अलग ही अनुभूति है जिसकी हम परिभाषा नहीं दे सकते। हमारे बच्चे की हर एक गतिविधि, उसका हंसना बोलना, चलना, खेलना, उसकी हर एक हरकत हमें सिर्फ और सिर्फ खुशियों से भर देती है। बच्चा जब पहली बार अपने माता-पिता को मम्मी पापा या मां पापा या अब्बा अम्मा जो भी कह कर पुकारता है वह सुनते ही मन एकदम तृप्त हो जाता है, आनंद से प्रफुल्लित हो जाते है। लेकिन सोचिए जब उम्र होने पर भी बच्चा बोल न पाए और आप यह सब सुनने को तरस जाएं तो मन शंकाओं से भर जाता है।

हर माता-पिता के लिए अपने बच्चे की पहली बार “मां”, “पापा” या “दादी” जैसी मीठी आवाज सुनना एक अनमोल अनुभव होता है। लेकिन जब बच्चा समय पर बोलना शुरू नहीं करता या उसकी भाषा विकास धीमा होता है, तो माता-पिता को चिंता होना लाजिमी सी बात है।

बच्चों के देरी से बोलने को स्पीच डिले (Speech Delay) कहा जाता है।

 

 

स्पीच डिले क्या होता है?

 

स्पीच डिले का मतलब होता है बच्चे का उम्र के अनुसार बोलने या भाषा समझने की क्षमता में देरी होना। सामान्य रूप से बच्चे 12 महीने तक कुछ शब्द बोलने लगते हैं और 18 से 24 महीने में 2 से 3 शब्दों को मिलाकर छोटे-छोटे वाक्य बनाते हैं। लेकिन अगर आपका बच्चा उम्र के हिसाब से कई शब्दों को मिला नहीं पा रहा है, तो ये स्पीच डिले का संकेत होता है।

 

बच्चों में स्पीच डिले के संभावित संकेत

 

बच्चों में देरी से बोलने यानी की स्लीप डिले की समस्या को पहचानना बहुत ही आसान काम है। पेरेंट्स बच्चों की छोटी-छोटी बातों पर गौर करके स्पीच डिले को पहचान सकते हैं।

 

** 1 साल की उम्र तक कोई शब्द न बोल पाना।

 

**18 महीने की उम्र तक सिर्फ इशारों का सहारा लेना।

 

** 2 साल की उम्र तक दो शब्दों का वाक्य न बना पाना।

 

** बच्चा दूसरों की बात नहीं समझता या प्रतिक्रिया नहीं देता।

 

**  लगातार हकलाना, रुक-रुक कर बोलना या शब्दों को दोहराना।

 

स्पीच डिले के प्रमुख कारण

 

बच्चों में स्पीच डिले के कारण कई प्रकार के हो सकते हैं। स्पीच डिले के प्रमुख कारणों में शामिल हैः

 

1. सुनने की समस्याएं- Hearing Loss

 

अगर बच्चा ठीक से सुन नहीं पा रहा है, तो उसे बोलना सीखने में भी परेशानी होगी। बार-बार कान में इन्फेक्शन होना, जन्म से ही सुनने में कमी या ऑडिटरी न्यूरोपैथी जैसी स्थितियों के कारण भी छोटे बच्चों को स्पीच डिले की समस्या होती है। अगर 1 साल तक बच्चा आपकी बात की प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है, तो इस विषय पर डॉक्टर से बात जरूर करें।

 

2. ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD)

 

बच्चों को कम उम्र से स्क्रीन देने से ऑटिज्म डिसऑर्डर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों में आमतौर पर भाषा और सामाजिक संवाद में समस्याएं होती हैं। स्पीच डिले, आई कॉन्टेक्ट न करना जैसे लक्षण ऑटिज्म का संकेत देते हैं।

 

3. डेवलपमेंट डिले- Developmental delay

 

कुछ बच्चों का संपूर्ण विकास (जैसे चलना, बोलना, समझना) धीमा होता है। ऐसे बच्चों को स्पीच में भी देरी होती है। ऐसे बच्चों में डेवलपमेंट डिले की परेशानी जेनेटिक और पारिवारिक माहौल के कारण होती है।

 

4. पारिवारिक कलह

 

कुछ घरों में माता-पिता के बीच अक्सर तनाव की स्थिति रहती है। इससे बच्चा उपेक्षा और अकेलेपन आता है, इससे भी बच्चों को स्पीच डिले की समस्या हो सकती है।

 

5. जुड़वां या छोटे गैप में बच्चे

 

अक्सर देखा गया है कि जुड़वां बच्चों या जिनके भाई-बहन बहुत छोटे गैप में होते हैं, उनमें स्पीच डिले होने की संभावना बढ़ जाती है क्योंकि एक-दूसरे की भाषा समझ कर वे बोलने की कोशिश नहीं करते।

 

6. अत्यधिक स्क्रीन टाइम

 

आज के आधुनिक युग में 2 साल से छोटे बच्चों के लिए मोबाइल, टीवी और टैबलेट जैसी स्क्रीन का अत्यधिक इस्तेमाल स्पीच डिले की एक प्रमुख वजह बन रही है। लंबे समय तक स्क्रीन देखने के कारण बच्चा सही तरीके से सुन, समझ और बोल नहीं पाता है।

 

स्पीच डिले होने पर माता-पिता की जिम्मेदारी? 

 

माता-पिता होने के नाते आपको ऐसा लग रहा है कि आपके बच्चे को उम्र के अनुसार बोलने में परेशानी हो रही है, तो इस स्थिति में घबराने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है। बच्चे के स्पीच डिले होने पर सही समय पर सही कदम उठाने से बच्चा सामान्य विकास की ओर लौट सकता है। इस स्थिति में पेरेंट्स को बस मानसिक धैर्य बनाए रखने की जरूर होती है।

 

स्पीच डिले होने पर क्या करें? 

 

-डॉक्टर, स्पीच थेरेपिस्ट और ऑडियोलॉजिस्ट की सलाह लें। वो थेरेपी के जरिए बच्चे के बोलने की परेशानी को दूर कर सकते हैं।

 

** 1 साल से ऊपर की उम्र के बच्चे का हियरिंग टेस्ट जरूर करवाएं। इस टेस्ट को करवाने से बच्चे के सुनने की क्षमता का पता लगाया जा सकता है।

**बच्चे से पूरे दिन बात करें- चाहे वो बोले या नहीं। जैसे – चलो चलें, ये देखो गेंद है, कितनी प्यारी बिल्ली है आदि।

**भाषा का विकास करने के लिए बच्चों को रंग-बिरंगी किताबें, फोटो दिखाएं।

** बच्चों के लिए बनी बाल कविताएं, लोरी या राइम्स सुनाएं। इनके माध्यम से शब्द, लय और उच्चारण सीखने में मदद मिलती है।

 

स्पीच डिले होने पर क्या न करें?

 

**  स्पीच डिले की समस्या होने पर बच्चे की तुलना दूसरे बच्चों से न करें। हर बच्चे का विकास अलग गति से होता है।

 

** अगर बच्चा बोल नहीं रहा, तो भी उसे बार-बार जवाब दें। संवाद बनाए रखना जरूरी है। उसे डांटने या किसी प्रकार की सजा देने से बचें।

 

** अगर 2 साल तक बच्चा ठीक से नहीं बोल रहा, तो इसे नजरअंदाज न करें।

 

** स्पीच डिले को ‘कुदरती’ मानकर इलाज से दूरी न बनाएं।  स्पीच थेरेपी समय पर शुरू हो जाए तो असर जल्दी होता है।

 

स्पीच डिले एक गंभीर लेकिन काबू में लाई जा सकने वाली समस्या है। माता-पिता का जागरूक होना और समय पर कदम उठाना बच्चे के भविष्य को नई दिशा दे सकता है। बच्चे का बोलना सिर्फ शब्दों को जोड़ना नहीं, बल्कि भावनाओं, सोच और समाज से जुड़ने का जरिया है। अगर बच्चे के बोलने में देरी हो रही है, तो इस विषय पर डॉक्टर से बात जरूर करें।

 

अमृता कुमारी – नेशन्स न्यूट्रिशन                            क्वालीफाईड डायटीशियन                                     डायबिटीज एजुकेटर ,अहमदाबाद

By AMRITA

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