डॉ. दयानन्द मल्लिक – रिटायर्ड (एमबीबीएस/जनरल फिजिशियन- मुजफ्फरपुर)
आज की युवा पीढ़ी बहुत ही आसानी से छोटी-छोटी बातों को लेकर अवसाद में चली जाती है। कोटा में हो रहे सुसाइड केसेस और आए दिन खबरों में पढ़ने वाले सुसाइड केसेस हमें कहीं ना कहीं आने वाली पीढ़ी के लिए बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती है। मेडिकली अगर सोचा जाए तो यह डिप्रेशन और एंजायटी क्यों सबको घेर रहा है और इसके क्या दुष्परिणाम उन्हें झेलने सकते हैं यह एक घोर चिंता का विषय है।युवा पीढ़ी भी इस डिप्रेशन के चपेट में आकर डीप वेन थ्रोम्बोसिस का शिकार हो रही है जिसकी वजह से उन्हें अचानक हार्ट अटैक या पैरालिटिक अटैक भी आ रहे हैं।
चिंता और अवसाद (Anxiety and Depression) कई बीमारियों को दावत देते हैं। शायद इसीलिए गीता में कहा गया है कि ”कर्म करो फल की चिंता मत करो।” और “चिंता से चतुराई घटे,दुख से घटे शरीर “क्योंकि फल की चिंता भी अवसाद का कारण बन सकता है और अवसाद से जीना मुश्किल और कष्टकर हो जाता है। हर तरफ प्रतिस्पर्धा की स्थिति है।स्टुडेंट्स हो या कि वर्किंग, किसी क्ष बिजनेस में अधिक लॉस हो गया तो कोई पारिवारिक कलह के चलते तनाव में है। एक शोध में पाया गया है कि चिंता या अवसाद से रक्त के थक्के जमने का खतरा लगभग 50 प्रतिशत बढ़ सकता है। मस्तिष्क इमेजिंग से पता चला कि तनाव से मानसिक बीमारियों के कारण सूजन, डीप वेन थ्रोम्बोसिस के खतरे बढ़ जाते हैं। जिससे नसों में रक्त का थक्का बनने लगता है।
अवसाद और डीप वेन थ्रोम्बोसिस के बीच संबंध
चिंता और अवसाद तथा डीप वेन थ्रोम्बोसिस के जोखिम के बीच संबंधों को समझने के लिए 1.1 लाख से अधिक लोगों के डेटा का विश्लेषण किया गया। 1,520 लोगों के दिमाग का इमेजिंग करवाई गई। जिसमें से तीन साल में 1,781 व्यक्तियों (1.5 प्रतिशत) में रक्त के थक्के जमने की स्थिति पाई गई। शोधकर्ताओं ने पाया कि चिंता या अवसाद होने पर डीप वेन थ्रोम्बोसिस होने की स्थिति में खून में थक्का बनने का जोखिम लगभग 50 प्रतिशत होती है। चिंता और अवसाद दोनो से ग्रसित होने की स्थिति में खून में थक्के जमने की संभावना 70 प्रतिशत होती है।
शोध के अनुसार, चिंता और अवसाद के कारण डीप वेन थ्रोम्बोसिस का जोखिम अधिक बढ़ जाता है। शोध में शामिल किए गए प्रतिभागियों की आयु आम तौर पर 58 वर्ष थी जिसमे 57 प्रतिशत महिलाएं थीं। ग्रुप में 44 प्रतिशत को कैंसर का भी इतिहास था।
कैसे जमता है खून का थक्का ?
रक्त का थक्का रक्त का एक समूह होता है, जो उस समय बनता है, जब आपके खून में प्लेटलेट्स और प्रोटीन एक साथ चिपक जाते हैं। प्लेटलेट्स कोशिकाओं के टुकड़े होते हैं, जो आमतौर पर आपके खून को जमने में मदद करते हैं। खून के थक्के किसी चोट से रक्तस्राव को कम करने में मदद करते हैं। जैसे ही आपका शरीर ठीक होता है, वे टूटकर घुल जाते हैं।
खून में थक्का बनने के संकेत
पैरों, हाथ, जांघों और पीठ के नीचे वाले हिस्से में जगह-जगह पर नसों का सृजन और नसों का काला होन होना इसकी पहली पहचान है
खून के थक्के का उपचार
खून में थक्के के इलाज के लिए आप किसी अच्छे हेमाटोलॉजिस्ट के पास जा सकते हैं। हेमेटोलॉजिस्ट डॉक्टर खून से संबंधित रोगों का विशेषज्ञ होता है।
खून को पतला करने वाली दवाइयां का उपयोग खून में थक्के बनने से रोकने के लिए किया जाता है। लेकिन आपके खून में पहले से मौजूद थक्के को नहीं तोड़ती। इसका उपयोग सिर्फ खून के थक्के के विकास को रोकने के लिए किया जाता है।
ये दवाएं रक्त के थक्कों को ब्लड में घोलती हैं। यह दवाएं सामान्य तौर पर गंभीर थक्कों को तोड़ने के लिए होती हैं।
ब्लड के थक्के को हटाने के लिए सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है। उदाहरण के लिए, थ्रोम्बेक्टोमी एक ऐसी तकनीक है, जो ब्लड वेन्स से रक्त के थक्के को हटाती है।