डॉ नलिनी रंजन, पटना। कुत्ते के काटने (डाग बाइट) पर लगाई जाने वाली वैक्सीन अब मांसपेशियों (इंट्रामस्क्यूलर) के बजाय त्वचा के नीचे (इंट्राडर्मल) दी जाएगी। इससे न सिर्फ पीड़ित को कम दर्द होगा बल्कि वैक्सीन की भी बचत होगी।अभी तक मरीजों को एक डोज में 0.5 एमएल वैक्सीन दी जाती थी। इसे पांच बार लेना होता था। अब 0.2 एमएल डोज चार बार दी जाएगी। पीएमसीएच पीएसएम विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अजय कृष्ण ने अधीक्षक और प्राचार्य की मौजूदगी में इस नई पद्धति का शुभारंभ किया।

क्या है नया तरीका :पहले एक मरीज को पांच डोज 0.5 एमएल के हिसाब से दिए जाते थे। इस तरह पीड़ित को कुल 2.5 एमएल वैक्सीन दी जाती है। अब इंट्राडर्मल पद्धति से केवल चार डोज 0.2 एमएल के हिसाब से 0.8 एमएल वैक्सीन ही दी जाएगी। इससे प्रत्येक मरीज पर 68 प्रतिशत तक वैक्सीन की बचत होगी।

नहीं लेना होगा ज्यादा इंजेक्शन डॉ. अजय कृष्ण ने बताया कि इस पद्धति से वैक्सीन देने पर संबंधित व्यक्ति को नहीं के बराबर दर्ज होगा और इंजेक्शन भी कम लेना होगा। उन्होंने बताया कि जांच में स्पष्ट हो चुका है कि इसमें भी रोग प्रतिरोधक क्षमता पहले जैसी ही प्रभावी बनी रहती है।

अमूमन 100 वैक्सीन हर दिन खर्च पीएमसीएच पीएसएम विभागाध्यक्ष डॉ. अजय कृष्ण ने बताया कि गर्मी एवं बरसात के मौसम में एंटी रैबीज वैक्सीन का खर्च बढ़ जाता है। दियारा क्षेत्र में सियार की खोह (गुफा) में पानी आने के कारण वे बाहर निकलते हैं। इससे उनके काटने के मामले भी बढ़ जाते हैं। वैसे पूरे एक वर्ष के औसतन पीएमसीएच में हर दिन 100 वैक्सीन की खपत होती है।

 

 

 

 

 

By ANJALI

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