आधुनिक विज्ञान में यूरोप महान आविष्कारों की जननी है. और एक बार फिर यूरोपियन एजेंसी एक ऐसे आविष्कार के करीब है जिसकी मदद से कैंसर का ऐसा इलाज संभव हो सकेगा जिसमें शरीर के हर कोने से कैंसर सेल्स का खात्मा हो जाएगा.
स्विटजरलैंड के जेनेवा में इसे लेकर काम चल रहा है. अगर सब कुछ ठीक रहा तो एक अल्ट्रा फास्ट रेडियोथेरेपी वाली मशीन बनाई जाएगी जिससे सेकेंड से भी कम समय में अंदर तक पनप रहे कैंसर कोशिकाओं को मार दिया जाएगा. यह वही जगह है जहां ब्रह्मांड की उत्पत्ति को समझने के लिए लार्ज हैड्रोन कोलाइडर का विकास किया था.
मेटास्टेसिस कैंसर का भी होगा इलाज
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक यह पारंपरिक रेडियोथेरेपी से बहुत तेज इलाज है और इसमें एक सेकंड से भी कम समय लगता है. इतना ही नहीं इसमें साइड इफेक्ट भी बहुत मामूली है. स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा के बाहरी इलाके में स्थित सर्न के इस विशाल लेबोरेटरी में वैज्ञानिक रेडियोथेरेपी मशीनों की नई पीढ़ी के विकास की ओर अग्रसर हैं. उम्मीद है कि यह मशीन बेहद असाध्य ब्रेन ट्यूमर और शरीर में फैल चुके मेटास्टेसिस कैंसर के इलाज को भी संभव बना सकती है. वर्तमान में जब कैंसर कोशिकाएं अपनी जगह से आगे बढ़ जाती है तो अंदर तक घुस जाती है और इसे मारने में रेडियोथेरेपी भी असफल हो जाती है. लेकिन रेडियोथेरेपी की इस नई मशीन से ऐसा नहीं होगा.इस मशीन से निकले रेडिएशन दूरस्थ बॉडी पार्ट में भी घुसे कैंसर कोशिकाओं को चकनाचूर कर देगी.
चूहे में सेकेंड के अंदर खत्म हुआ ट्यूमर
सर्न में जो लार्ज हैड्रोन कोलाइडर बनाया गया था उसमें भौतिकी के अनेक प्रयोग हो रहे हैं और इससे पूरे विज्ञान जगत को फायदा मिल रहा है. सर्न की सबसे बड़ी उपलब्धियों में Higgs boson की खोज थी, जिसे गॉड पार्टिकल कहा जाता है. हाल के वर्षों में सर्न के इस केंद्र ने उच्च ऊर्जा कणों को त्वरित करने में विशेषज्ञता हासिल की है और इस तरह कैंसर रेडियोथेरेपी की दुनिया में में एक नई दिशा की खोज की है. जेनेवा यूनिवर्सिटी अस्पताल में कार्यरत मैरी कैथरीन वोजेनिन के नेतृत्व में एक पेपर प्रकाशित हुआ है जिसमें इस डिस्कवरी को रेडियोथेरेपी की दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव कहा जा रहा है. इस प्रयोग में चूहों पर अल्ट्रा हाई डोज की दर से एक सेकेंड से भी कम समय में रेडिएशन की चिंगारी छोड़ी गई. इसके बाद देखा गया कि इस चूहे में ट्यूमर था वह नष्ट हो गया और उसकी जगह हेल्दी टिशू ने ले लिया. इसका असर तत्काल हुआ. अंतरराष्ट्रीय एक्सपर्ट इस रेडिएशन की इस उच्च दर को मील का पत्थर कहा है. दुनिया भर के वैज्ञानिकों से इस प्रयोग को आगे बढ़ाने का आह्वान किया गया है.
8 सप्ताह तक दी जा सकती है थेरेपी
वैज्ञानिकों ने इस सिद्धांत या तकनीक का नाम फ्लैश दिया है. फ्लैश ने उन अवधारणा का भी समाधान किया है जिसकी कमी रेडियोथेरेपी की दुनिया में लंबे समय से महसूस की जा रही है. यह कैंसर उपचार के सबसे सामान्य तरीकों में से एक है, जिसे सभी कैंसर मरीजों में से दो-तिहाई किसी न किसी बिंदु पर अपने इलाज के दौरान प्राप्त करेंगे. सामान्यत: इसे एक्स-रे या अन्य कणों की एक बीम के माध्यम से दो या पांच मिनट के कोर्स में दिया जाएगा. यह करीब आठ सप्ताह तक चल सकता है ताकि मरीजों को सहन करने की क्षमता में कोई दिक्कत न हो.