मारे देश में ऐसी कई परांपरा सदियों से चली आ रही है जिनके पीछे कई ठोस कारण होते है। ऐसी ही एक परांपरा हमको तब देखने को म‍िलती है, जब हमारे घरों में क‍िसी न्‍यू बोर्न बेबी का जन्‍म होता है, तब उसे नए कपड़े पहनाने की बजाय घर में मौजूद पहले से क‍िसी बच्‍चे के पहने हुए कपड़े या दूसरों के बच्‍चों उधार लेकर कपड़े पहनाए जाते हैं।

छठी की पूजा से पहले बच्‍चे को नए कपड़े नहीं पहनाए जाते हैं। गांवों में या ज‍िन घरों में बुर्जुग होते हैं, वहां आज भी पुराने कपड़े पहनाने का यह रिवाज फॉलो क‍िया जाता है। हालांक‍ि मन में आता है क‍ि आखिर क्‍यों न्‍यू बोर्न बेबी को पुराने कपड़े पहनाने चाहिए?

दरअसल बच्चों को पुराने कपड़े पहनाने के पीछे न सिर्फ मान्यता हैं बल्कि विज्ञान भी छिपा हुआ है और ये बच्चे की सेहत से जुड़ा है।

वायरल इंफेक्शन का खतरा

नए कपड़ों पर कई तरह के वायरस और बैक्टीरिया हो सकते हैं, जो शिशु के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं, खासकर जब इम्यूनिटी कमजोर होती है। बिना धोए नए कपड़े पहनाने से स्किन इंफेक्शन और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए, नवजात शिशु को कपड़े पहनाने से पहले उन्हें अच्छे से धोकर सुखाना जरूरी होता है। यही कारण है कि भारत में जन्म के बाद बच्चों को पुराने कपड़े पहनाने की परंपरा है, ताकि शिशु को किसी भी प्रकार की बीमारी से बचाया जा सके।

पुराना सूती कपड़ा होता है मुलायम

भारत में नवजात शिशु को अक्सर दूसरों से उधार किए गए कपड़े पहनाने की परंपरा रही है, खासकर पुराने समय में। इसका कारण सूती कपड़ों का कड़ा और खुरदुरा होना था, जो नए खरीदने पर आमतौर पर पाया जाता था। नया सूती कपड़ा जब तक दो या तीन बार धोया नहीं जाता, तब तक उसमें कड़ापन होता है और उस पर मौजूद रंग भी उसकी त्वचा पर असर डाल सकते हैं। ये रंग और केमिकल्स शिशु की कोमल त्वचा के लिए हानिकारक हो सकते हैं।

पुराना सूती कपड़ा से त्वचा रहती है सुरक्षित

पुराना सूती कपड़ा, जो पहले ही कई बार धोया जा चुका होता है, न सिर्फ मुलायम होता है, बल्कि यह केमिकल रहित भी हो जाता है। इस तरह के कपड़े शिशु की त्वचा के लिए सुरक्षित होते हैं। इसके अलावा, पुराने सूती कपड़े पसीना और मूत्र को जल्दी सोख लेते हैं, जबकि नए कपड़े पर एक परत होती है, जो इन पदार्थों को नहीं सोख पाती।

इस कारण पुराने समय में शिशु को मिलने वाले कपड़े अक्सर घर में इस्तेमाल किए गए पुराने सूती कपड़े होते थे, जिनसे डायपर या पोतड़े बनाए जाते थे, ताकि नवजात को किसी प्रकार की असुविधा न हो।

नवजात शिशु के लिए कपड़े चुनते समय इन बातों का रखें ध्‍यान

शिशु की त्वचा बेहद नाजुक होती है, इसलिए सही कपड़ों का चुनाव उनके आराम और सेहत के लिए जरूरी है।

फैब्रिक का चुनाव

-हमेशा मुलायम और स्किन-फ्रेंडली फैब्रिक का चयन करें।

-मलमल, कॉटन, या ऑर्गेनिक मटेरियल सबसे बेहतर विकल्प हैं क्योंकि ये नर्म और सांस लेने लायक होते हैं।

मौसम के अनुसार कपड़े

– गर्मी में हल्के और सांस लेने वाले फैब्रिक चुनें।

– सर्दी में गर्म और लेयरिंग वाले कपड़ों का उपयोग करें।

साइज और फिटिंग

– टाइट फिटिंग वाले कपड़े नवजात शिशु को असुविधाजनक कर सकते हैं।

– हल्के, लूज और सही साइज के कपड़े पहनाएं, जो न ज्यादा बड़े हों और न छोटे।

सिलाई और डिज़ाइन

– कपड़ों की सिलाई को जांच लें ताकि किसी भी तरह का टेढ़ा-मेढ़ा धागा या कड़क हिस्सा बच्चे को परेशान न करे।

– भारी बटन, जिप या सजावटी सामान वाले कपड़े से बचें।

 

कपड़े धोने में सावधानी

– बच्चों के कपड़े धोने के लिए माइल्ड डिटर्जेंट का उपयोग करें।

– कपड़े धोने के बाद अच्छी तरह से धोकर सुखाएं ताकि किसी भी प्रकार का केमिकल अवशेष न रहे।

शिशु के कपड़ों को माइल्ड डिटर्जेंट से ही धोएं

नवजात शिशु की हाइजीन का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। शिशु के कपड़ों को माइल्ड डिटर्जेंट से धोने के बाद सैनिटाइज करें। बाजार में उपलब्ध बेबी-फ्रेंडली सैनिटाइजिंग प्रोडक्ट का इस्तेमाल करें। बच्चे को सर्दी, खांसी, बुखार से ग्रस्त लोगों से दूर रखें। अन्य छोटे बच्चों से भी शिशु को थोड़ा अलग रखें, क्योंकि वे खेलते वक्त जर्म्स के संपर्क में आते हैं। शिशु को गोद में लेने से पहले हाथ साफ करना और उसकी त्वचा पर कोई भी हार्श प्रोडक्ट इस्तेमाल न करना हाइजीन बनाए रखने में मददगार है।

 

अमृता कुमारी – नेशन्स न्यूट्रिशन                          (क्वालीफाईड डायटीशियन/ एडुकेटर अहमदाबाद) 

By AMRITA

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