हेल्थ रिपोर्ट : देश के करीब 50 फीसदी युवा पीढ़ी आलसी हैं, जो आवश्यकता के अनुरूप शारीरिक परिश्रम नहीं करते। महिलाओं की स्थिति पुरुषों की तुलना में और भी खराब है। अगर स्थिति यही रही, तो 2030 तक 60 फीसदी भारतीय विभिन्न बीमारियों का शिकार हो जाएंगे।
यहां शारीरिक श्रम का अर्थ है कि लोग व्यायाम नहीं करते, पैदल नहीं चलते या दौड़ते नहीं हैं। इससे सेहत से जुड़े जोखिम बढ़े हैं।
द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, दक्षिण एशिया में अधिकतर वयस्क व्यायाम व अन्य शारीरिक गतिविधियों के मामले में बेहद सुस्त हैं। भारत में 57 फीसदी महिलाएं शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं हैं, जबकि ऐसे पुरुष वयस्कों की संख्या 42 फीसदी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) सहित शोधकर्ताओं की टीम ने कहा, बालिगों के शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं होने के मामले में भारत उच्च आय वाले एशिया-प्रशांत क्षेत्र में दूसरे स्थान पर है। भारत में 2000 में 22 फीसदी वयस्क शारीरिक रूप से पर्याप्त सक्रिय नहीं थे। 2010 में यह संख्या 34 फीसदी व अब 50 फीसदी पहुंच गई है। 2030 तक 60 % वयस्कों पर मधुमेह जैसी बीमारियों का खतरा है।
बीमारियों का खतरा, स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों पर बोझ
लबे समय तक शारीरिक निष्क्रियता से मधुमेह और हृदय रोग सहित अन्य गैर-संचारी रोगों का खतरा बढ़ जाता है। सुस्त जीवनशैली के कारण होने वाली ये बीमारियां दुनियाभर में स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों पर बोझ बढ़ा रही हैं।
10 करोड़ भारतीय मधुमेह से पीड़ित
द लैंसेट डायबिटीज एंड एंडोक्रिनोलॉजी जर्नल में प्रकाशित इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च-इंडिया डायबिटीज अध्ययन के मुताबिक, भारत में 2021 में 10.1 करोड़ लोग मधुमेह से पीड़ित थे। उसी साल करीब 31.5 करोड़ लोग उच्च रक्तचाप से ग्रस्त रहे।
दुनियाभर में आलसी बालिग 31.3 फीसदी
अध्ययन में दावा है कि दुनियाभर में शारीरिक गतिविधियों में पीछे रहने वाले वयस्कों की संख्या 5 फीसदी बढ़कर 31.3 फीसदी हो गई है। 2010 में 26.4 फीसदी वयस्क शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं थे। अगर यह ट्रेंड आगे भी जारी रहा तो शारीरिक गतिविधियों में 15 फीसदी सुधार करने का वैश्विक लक्ष्य पूरा नहीं हो पाएगा।
शारीरिक रूप से पीछे रहने का मतलब : कोई भी वयस्क अगर हर सप्ताह कम-से-कम 150 मिनट मध्यम-तीव्रता या प्रति सप्ताह 75 मिनट जोरदार-तीव्रता वाली शारीरिक गतिविधि नहीं करता है तो वह शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं है।
शोधकर्ताओं ने वर्ष 2000 से 2022 तक 197 देशों में अपर्याप्त शारीरिक गतिविधि करने वाले बालिगों की संख्या का अनुमान लगाने के लिए जनसंख्या आधारित सर्वेक्षणों का विश्लेषण किया है।