हेल्थ डेस्क : यूनानी चिकित्सा में प्रचलित जोंक थेरेपी वर्तमान में सोरायसिस  (त्वचा संक्रमण) के उपचार में बेहद कारगर साबित हो रही है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के तिब्बिया कॉलेज में 50 मरीजों पर एक वर्ष तक शोध किया गया।

इस दौरान मरीजों को संक्रमण से राहत मिली और दवा नहीं खानी पड़ी।

शोध करने वाले डॉ. नवालुर्रहमान ने बताया कि 18 से 55 साल की आयु के मरीजों पर शोध किया। यह सभी 50 मरीज पूरी तरह सही हो गए। अंग्रेजी दवाओं से इनको राहत नहीं मिल रही थी। इनमें कुछ को दो बार थेरेपी देनी पड़ी जबकि कुछ को उससे ज्यादा। डॉ. नवालुर्रहमान का कहना है कि सोरायसिस कई तरह के होते हैं। यह चकत्ते वाले, छोटे बूंद जैसे धब्बे की तरह दिखते हैं। यह बगल, कमर और स्तनों के नीचे की त्वचा की परत को प्रभावित करते हैं।

 

केस-1- बदायूं निवासी सुहेल के पैर की त्वचा में संक्रमण था। जोंक थैरेपी से पैर से खराब रक्त हटाया गया। अब वह दो महीने से सिर्फ चेकअप के लिए आता है। दवाएं भी बंद हो गईं हैं।

केस-2- भुजपुरा सुपर कॉलोनी निवासी शबाना की कोहनी में सोरायसिस की समस्या थी। कहीं आराम न होते देख जोंक थेरेपी से राहत मिली। अभी वह डॉक्टरों की निगरानी में है। दवाएं बंद हो चुकी हैं।

केस-3- अलीगढ़ के नई बस्ती इलाका निवासी बुजुर्ग वेदप्रकाश के पैर में भी संक्रमण था। चिकित्सकों ने सोरायसिस बताया और इलाज शुरू किया। छह महीने दवा खाने के बाद भी अच्छे परिणाम सामने नहीं आए। जोंक थेरेपी से राहत मिली है।

 

बच्ची का पैर कटने से बचा

जोंक थेरेपी से एक महीने की बच्ची का पैर कटने से बच गया। टीकाकरण के दुष्प्रभाव से उसके पैर का पंजा काला हो गया था। डॉक्टर ने जैसे ही घुटने के नीचे का पैर काटने की बात कही, परिजन परेशान हो गए। परिचित के बताने पर परिजन बच्ची को लेकर एएमयू के एके तिब्बिया कॉलेज आए, जहां जोंक थैरेपी से उपचार शुरू हो गया।शहर के जमालपुर के मोहम्मद इमरान की बेटी सना को जन्म के बाद टीका लगाया गया, लेकिन टीका रिएक्शन कर गया। उसका उपचार कराया गया, लेकिन आराम होने की बजाय बीमारी बढ़ रही थी। डॉक्टर ने कहा कि बच्ची के घुटने के नीचे का हिस्सा काटना पड़ेगा, वर्ना बीमारी बढ़ती जाएगी और पूरा पैर चपेट में आ सकता है। डॉ. मोहम्मद शोएब ने बच्ची का जोंक थेरेपी से इलाज शुरू किया। उन्होंने कहा कि एक हफ्ते में दो बार जोंक थेरेपी दी जाने लगी। इसके बाद उसे आराम होने लगा। दो महीने के इलाज बाद उसका पैर कटने से बच गया, लेकिन पंजे की अंगुलियां काटनी पड़ी। अब बेटी ठीक है।

 

कैसे होता है उपचार? 

इस थेरेपी में जब शरीर पर जोंक लगाया जाता है तो ये वहां चिपक जाती है जहां पर गंदा खून होता है। 15-20 मिनट में ये शरीर से गंदा खून चूसती है और मोटी होती जाती है। इसके बाद अपने आप साइड हो जाती है। गांठ, ट्यूमर और सिस्ट जैसी बीमारियों के लिए लीच थेरेपी बहुत कारगर है।

 

जोंक बैंक में लाए जाएंगे 500 जोंक 

तिब्बिया कॉलेज में जोंक बैंक है, जिसमें अभी फिलहाल 150 जोंक है, साथ ही और 500 जोंक लाने की तैयारी है।

By AMRITA

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