
एडीएचडी क्या है
एडीएचडी या अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर एक तरह का न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर है। यह बच्चों और वयस्कों, दोनों को प्रभावित कर सकता है। एडीएचडी होने पर मरीज ओवर एक्टिव हो जाता है, ओवर एक्साइटेड रहता है, जो कि उसकी रोजमर्रा की जिंदगी को प्रभावित कर सकता है। हालांकि, यह बीमारी ज्यादातर छोटे बच्चों को होती है, जो कि टीनेजर और एडल्ट होने तक जारी रह सकती है।एडीएचडी को तीन भागों में बांटा गया है। ये हैं, इनअटेंशन, हाइपरएक्टिविटी और इंपल्सिविटी।
इनअटेंशनः इसका मतलब है कि मरीज को किसी भी तरह के काम करने में फोकस बनाए रखने और व्यवस्थित तरीके से काम करने में कठिनाई होती है।
हाइपरएक्टिविटीः इस तरह की स्थिति में मरीज बहुत चंचल होता है। अक्सर कुछ न कुछ करता रहता है। जैसे, लगातार बहुत सारी बातें करना, बहुत ज्यादा सक्रिय रहना और अक्सर बेचैनी महसूस करना।
इंपल्सिविटीः जब कोई व्यक्ति बिना सोचे-समझे कुछ भी करता रहता है और उनका खुद पर कोई कंट्रोल नहीं होता है। यही नहीं, इंपल्सिविटी के कारण मरीज अपने हित के लिए दूसरों को परेशान कर सकता है और बिना सोचे-समझे कोई भी फैसला ले सकता है।
एडीएचडी के लक्षण हैं।
‘एडीएचडी वाले कुछ लोगों में मुख्य रूप से इनअटेंशन के लक्षण दिखते हैं। वहीं, दूसरों में अधिकतर हाइपरएक्टिविटी-इंपल्सिविटी के लक्षण नजर आते हैं। जबकि कुछ लोगों में दोनों तरह के लक्षण दिख सकते हैं।
इनअटेंशन के लक्षण
- काम को लेकर लापरवाह रहना।
- ज्यादातर कामों को नजरअंदाज करना।
- स्कूल के कामकाज पर ध्यान न देना।
- किसी भी तरह के काम को करने में ध्यान केंद्रित करने में मुश्किल महसूस करना।
- लंबे समय तक पढ़ाई करने में मुश्किल होना।
- सीधे-सीधे अपनी बात को समझाने में असफल रहना।
- ऑर्गनाइज तरीके से किसी भी टास्क को कंप्लीट न कर पाना।
- किसी भी काम को शुरू करते ही ध्यान भटक जाना।
- ऐसे कामों से बचना, जिसमें मानसिक दबाव पड़ता हो, जैसे कोई रिपोर्ट तैयार करना या होमवर्क खत्म करना।
हाइपरएक्टिविटी-इंपल्सिविटी के लक्षण
- बैठे-बैठे हिलना-डुलना। शांत रहकर न बैठ जाना।
- स्वभाव में बेचैनी होना।
- स्कूल में अपनी क्लास में लंबे समय तक बैठे रहने में दिक्कत महसूस करना।
- जब भी मन हो, उठकर दौड़ लगाना। एक जगह न टिकना। यहां-वहां दौड़ना-भागना आदि।
- चुपचाप बैठकर कोई काम न कर पाना।
- बहुत ज्यादा और निरर्थक बातें करना।
- दूसरों की बातों को पूरा न सुनना और बीच में टोकते हुए अपनी बात कंप्लीट करना।
एडीएचडी का कारण
एडीएचडी होने के कारण को जानने का प्रयास कर रहे हैं। अब तक यह नहीं पता लगाया जा सका है कि आखिर किसी को यह बीमारी क्यों होती है। लेकिन कुछ कारणों पर विशेषज्ञों ने फोकस करते हुए बताया है कि इसकी वजह आनुवांशिक हो सकता है, सिर पर चोट लगने की वजह से हो सकती है, प्री-मैच्योर बर्थ होने पर हो सकता है और आसपास का माहौल भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकता है। इसके अलावा, गर्भावस्था के दौरान अगर महिला बहुत ज्यादा नशीले पदार्थ का सेवन करे, तंबाकू और शराब पिए, तो इस तरह की प्रॉब्लम हो सकती है। यही नहीं, अगर बच्चे का वजन कम हो, तो भी उसे एडीएचडी हो सकता है।’
एडीएचडी का ट्रीटमेंट
एडीएचडी के ट्रीटमेंट के दौरान, निम्न चीजों पर भी फोकस किया जाता है, जैसे लाइफस्टाइल चेंजेस, एजुकेश ट्रेनिंग और करीबियों का सपोर्ट।
दूसरों की मदद कैसे करें
अगर आपके करीबी में कोई ऐसा है, जिसे एडीएचडी है, तो आपको बहुत सावधानी और सतर्कता बरतनी होगी। ‘इसके लिए, आपको खुद को एजुकेट करना होगा। मरीज को ट्रीटमेंट के लिए मोटिवेट करना होगा, उसे इमोशनल सपोर्ट देना होगा, जरूरी हो तो किसी ऑर्गनाइजेशन से उसके लिए मदद लें और हमेशा धैर्य बनाए रखना बहुत जरूरी है। इसके अलावा, आपको हेल्दी हैबिट्स अपनाने चाहिए ताकि मरीज की मदद कर सकें और हमेशा मरीज को अलग-अलग एक्टिविटीज में एंगेज रखने की कोशिश करनी होगी।’
(प्रियंवदा दीक्षित – फूड फॉर हील) (क्वालीफाईड डायटीशियन, आगरा)