प्रत्येक बच्चे की सोने की अलग आदत होती है। कुछ बच्चे तकिए, कंबल और खिलौनों के साथ सोना पसंद करते हैं। वहीं बहुत से बच्चे अपने माता-पिता के साथ सोने की आदत डाल लेते हैं। यह आदत उनके छोटे बच्चों रहने तक तो ठीक है, लेकिन जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं, कुछ असुविधाएँ हो सकती हैं।

ऐसा इसलिए है क्योंकि अचानक यदि बच्चे को अकेला छोड़ कहीं जाना पड़े, जैसे आपको एक रात के लिए हॉस्पिटल में रुकना हो तो यह उनके लिए बहुत मुश्किल हो सकता है। बच्चे इस प्रकार आपके आदी हो जाते हैं कि वो इस अवस्था को संभाल नहीं पाते हैं। वो किसी और परिवार के सदस्य के साथ भी सोना नहीं चाहते क्योंकि वो आपके साथ सोने के आदी हो चुके हैं।इसलिए बच्चों को कभी-कभी अकेले सोने की आदत डालना बहुत महत्वपूर्ण है।

क्यों जरूरी है बच्चे का अकेले सोना 

बचपन में बच्चों को माता-पिता से अधिक स्नेह की आवश्यकता होती है। इस कारण उनके साथ सोना कोई गलत बात नहीं है। लेकिन जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, उन्हें अकेले सोने की आदत डालना चाहिए।कभी-कभी, यदि बच्चा अकेले सोना चाहता भी है, तो माता-पिता उसे मना कर देते हैं जो कि पूरी तरह गलत है। यदि ऐसा जारी रहता है, तो उस बच्चे को हमेशा सोने के लिए माता-पिता की तलाश बनी रहती है। वो मानसिक तौर पर अकेले रहने और सोने के लिए तैयार नहीं हो पाता है। कई बार अच्छी स्कूलिंग के लिए बच्चों को घर से दूर जाकर रहना होता है फिर उन्हें अकेले रहना, सोना हर काम में दिक्कत आती है और इस कारण वो अवसाद से घिर जाते हैं।

रुक जाता है बच्चों का भावनात्मक विकास

बड़ी उम्र तक पेरेंट्स के साथ सोने से उन्हें किसी भी अन्य रिश्तेदार से घुलने मिलने में वक्त लगता है। ऐसे बच्चे अपने पेरेंट्स पर डिपेंड रहते है। जिवन में आने वाली हर छोटी बड़ी चुन्नौती से निपटने के लिए उन्हें पेरेंट्स की जरूरत महसूस होती है। वो कोई भी सटीक निर्णय नहीं ले पाते। साथ ही किसी भी इंसान को समझने और उनसे सहजता से बात करने में कठनाई होती है। इसलिए सही उम्र और समय पर बच्चों को अलग सुलाना एक बहुत ही अहम फैसला है जिसे हर माता पिता को बड़े ही प्यार और समझदारी के साथ बच्चों के लिए लेना ही चाहिए।

अमृता कुमारी – नेशन्स न्यूट्रिशन                         (क्वालीफाईड डायटीशियन/ एडुकेटर अहमदाबाद) 

By AMRITA

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