भारतीय संस्कृति में औषधियों का महत्व सिर्फ चिकित्सा तक सीमित नहीं है, बल्कि इन्हें आस्था और आध्यात्म से भी जोड़ा गया है। यही कारण है कि नवरात्रि जैसे पावन पर्व पर नौ देवियों की पूजा के साथ नौ खास औषधियों का भी उल्लेख मिलता है।
पौराणिक कथाओं में भी इन औषधियों का उपयोग स्वास्थ्य रक्षा और रोग निवारण के लिए किया जाता था।
नवरात्रि के नौ दिनों में अलग-अलग देवी की आराधना के साथ एक-एक औषधि भी उनसे जोड़ी गई है। इन पौधों और जड़ी-बूटियों को आयुर्वेद में अमृत समान माना गया है, क्योंकि ये शरीर, मन और आत्मा को संतुलित रखने का काम करती हैं। आइए जानते हैं इन नौ औषधियों और उनके औषधीय महत्व के बारे में।
नौ देवियों के नाम से जानी जाने वाली आयुर्वेदिक बूटियां
शैलपुत्री – हरड़ या अमृता
नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा होती है, जिन्हें ‘हिमावती’ भी कहा जाता है। इनसे हरड़ का संबंध माना जाता है। आयुर्वेद में हरड़ को हरितकी नाम से जाना जाता है। इसके सात प्रकार हैं – अमृता, पथ्या, हरितिका, चेतकी, हेमवती, कायस्थ और श्रेयसी। हरड़ पाचन को दुरुस्त करता है और कई बीमारियों में औषधि की तरह काम आता है।
ब्रह्मचारिणी – ब्राह्मी
दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। इनके नाम से प्रसिद्ध औषधि ‘ब्राह्मी’ है। ब्राह्मी याददाश्त बढ़ाने, मानसिक शांति देने और आयु लंबी करने में मदद करती है। यह रक्तविकारों को भी दूर करती है और स्वर को मधुर बनाती है। इसी कारण इसे माता सरस्वती का स्वरूप भी माना गया है। भारत के अलग-अलग हिस्सों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है।
चंद्रघंटा – धनिया
तीसरे दिन की देवी चंद्रघंटा से चंदासुर औषधि यानी ‘धनिया’ का संबंध है। इसकी प्रकृति धनिया जैसी होती है। धनिया वजन घटाने में मदद करता है और शरीर में शक्ति बढ़ाता है।
कुष्मांडा – कुम्हड़ा
चौथे दिन देवी कुष्मांडा की पूजा होती है। इन्हें ‘कुम्हड़ा औषधि’ का स्वरूप माना जाता है। कुम्हड़ा पेट साफ करता है, मानसिक रोगों को दूर करता है और शरीर को हल्का महसूस कराता है। इसी कुम्हड़े से आगरा की प्रसिद्ध मिठाई पेठा भी बनाई जाती है।
स्कंदमाता – अलसी
पांचवे दिन की देवी स्कंदमाता से ‘अलसी औषधि’ जुड़ी है। अलसी वात, पित्त और कफ दोषों का संतुलन बनाए रखती है। इसकी प्रकृति गर्म होती है और यह पौष्टिक भी है। अलसी दर्द और सूजन को कम करने में सहायक है।
कात्यायनी – मोइया
छठे दिन माता कात्यायनी की पूजा होती है। इन्हें ‘मोइया औषधि’ का रूप माना गया है। यह औषधि गले से जुड़ी बीमारियों में बहुत असरदार है और कफ-पित्त को संतुलित करने में मदद करती है।
कालरात्रि – नागदौन
सातवें दिन माता कालरात्रि की पूजा होती है। इन्हें ‘नागदौन औषधि’ का स्वरूप माना गया है। नागदौन मानसिक तनाव, विकार और मस्तिष्क से जुड़ी समस्याओं को दूर करने में सहायक है।
महागौरी – तुलसी
आठवें दिन माता महागौरी की पूजा होती है। इनका संबंध ‘तुलसी’ से माना जाता है। तुलसी हृदय रोगों से बचाती है, सर्दी-जुकाम में राहत देती है और लिवर की सेहत को भी सुधारती है। इसे आयुर्वेद में अमृत समान बताया गया है।
सिद्धिदात्री – शतावरी
नवमी के दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। इनके साथ ‘शतावरी औषधि’ जुड़ी हुई है। शतावरी महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए वरदान है। यह बुद्धि, विवेक और हार्मोनल संतुलन को बेहतर बनाने में मदद करती है।
नवरात्रि की नौ देवियां केवल आस्था और भक्ति का प्रतीक ही नहीं हैं, बल्कि उनसे जुड़ी नौ औषधियां भी जीवन में स्वास्थ्य और ऊर्जा का आशीर्वाद देती हैं। आयुर्वेद में इन सभी औषधियों को अमृत समान माना गया है। अगर इन्हें अपनी दिनचर्या में शामिल किया जाए तो यह शरीर, मन और आत्मा को संतुलित और स्वस्थ रखने में मदद करती हैं।