विश्व IVF दिवस ,25 जुलाई 2025:
क्या आप जानते हैं कि टेस्ट ट्यूब बेबी की शुरुआत कब हुई थी? क्या IVF से जन्मा बच्चा सामान्य होता है? आज विश्व IVF दिवस के अवसर पर जानिए कि इस तकनीक का उपयोग पहली बार कब किया गया था और कितनी सफल है ये तकनीक!
25 जुलाई 1978 को पहले टेस्ट ट्यूब बेबी लुईस ब्राउन का जन्म हुआ था। हालांकि IVF तकनीक अब अधिक प्रचलित हो गई है, लेकिन यह कई साल पहले से अस्तित्व में थी। आइए जानते हैं इस दिन का महत्व क्या है?
IVF तकनीक का विकास
IVF, या इन विट्रो फर्टिलाइजेशन, की शुरुआत 47 साल पहले हुई थी। इसका सफल परीक्षण 25 जुलाई 1978 को हुआ, जब इंग्लैंड के ओल्डहैम जनरल हॉस्पिटल में लुईस जॉय ब्राउन का जन्म हुआ। इस तकनीक के विकास में डॉक्टर पैट्रिक स्टेप्टो और प्रोफेसर रॉबर्ट एडवर्ड्स का महत्वपूर्ण योगदान था। रॉबर्ट एडवर्ड्स को इस तकनीक के लिए नोबेल पुरस्कार भी मिला है।
लुईस के जन्म की प्रक्रिया
लुईस ब्राउन की मां, लेस्ली ब्राउन, को फेलोपियन ट्यूब में समस्या थी, जिसके कारण वह गर्भवती नहीं हो पा रही थीं। इसलिए, उनके अंडाणुओं और पति के शुक्राणुओं को प्रयोगशाला में मिलाकर निषेचित किया गया। इसके बाद तैयार भ्रूण को लेस्ली के गर्भ में स्थानांतरित किया गया। लुईस का जन्म सी-सेक्शन के माध्यम से हुआ और उनका वजन 2.608 किलोग्राम था। लुईस की बहन नताली का जन्म भी IVF प्रक्रिया से हुआ था।
नताली की प्राकृतिक गर्भधारण
लुईस और नताली दोनों का जन्म IVF तकनीक से हुआ, लेकिन नताली ने प्राकृतिक तरीके से एक बच्चे को जन्म देकर एक नई उपलब्धि हासिल की।
लुईस की सेहत
लुईस स्वस्थ और बिना किसी जन्मदोष के पैदा हुई थीं। उन्होंने सामान्य जीवन जीया और आज भी इंग्लैंड में अपने परिवार के साथ रह रही हैं। उनकी शादी 2004 में हुई थी और उनके बेटे का जन्म भी प्राकृतिक तरीके से हुआ। यह दर्शाता है कि IVF प्रक्रिया से जन्मे बच्चों में प्रजनन संबंधी कोई समस्या नहीं होती।
भारत का पहला IVF बच्चा
भारत में पहला IVF बच्चा 1978 के अक्टूबर में जन्मा, जिसका नाम कनुप्रिया अग्रवाल था। लुईस के जन्म के 67 दिन बाद कनुप्रिया का जन्म हुआ। डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय ने भारत में IVF तकनीक को लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सौजन्य : टीम हेल्थ वॉच