घर में कोई बीमार हो जाए, चाहे वो बच्चे हों बुजुर्ग हो या फिर हम खुद ही क्यों ना बीमार हों ,हम तुरंत ही उसके इलाज के लिए किसी ने किसी दवाई का सहारा ढूंढने लगते हैं। खासकर अगर कोई इनफेक्शियस डिजीज हमें हो रहा है या कोई छोटा-मोटा इन्फेक्शन भी होता है तो भी हम तुरंत दवाई लेने की सोचते हैं।
हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम हमारे शरीर को काफी सुरक्षा प्रदान करता है । किसी भी बैक्टीरिया वायरस के इंफेक्शन को हमारे शरीर में घुसने से रोकता है। एक सुरक्षा कवच की तरह वह हमारी रक्षा करता है लेकिन कई बार हमारी कुछ गलतियों की वजह से हम बीमार हो जाते हैं। वैसे तो छोटे-मोटे संक्रमण होने पर हमारा शरीर खुद ही बचाव करने में सक्षम होता है लेकिन समस्या यदि गंभीर हो तो एंटीबायोटिक लेना जरूरी होता है।
कुछ लोग हर छोटा-मोटा संक्रमण होते ही एंटीबायोटिक दवा लेना शुरू कर देते हैं, जो काफी नुकसानदायक होते हैं। कई अध्यनों में दुनियाभर में एंटीबायोटिक्स के बढ़ते इस्तेमाल के चलते को लेकर अलर्ट किया जाता रहा है, पर क्या आप जानते हैं कि इसके जोखिम और भी गंभीर हो सकते हैं?
स्वास्थ्य विशेषज्ञों की एक टीम ने सभी लोगों को अलर्ट किया है कि बच्चों को बिना डॉक्टरी सलाह के एंटीबायोटिक दवा देने से बचना चाहिए। इन दवाओं का ज्यादा इस्तेमाल भविष्य में कई प्रकार की क्रॉनिक बीमारियों जैसे डायबिटीज-हाई ब्लड प्रेशर यहां तक कि कैंसर के खतरे को भी बढ़ाने वाली हो सकती है।
अध्ययनकर्ताओं की टीम ने डॉक्टर्स को भी सावधान किया है कि एंटीबायोटिक के ज्यादा इस्तेमाल (विशेषकर बच्चों में) को लेकर सावधानी बरतते रहने की आवश्यकता है।
बच्चों में मोटापा का मुख्य कारण हैं ये दवाएं
एक नए अध्ययन में पाया गया है कि बचपन में संक्रमण से लड़ने वाली आम दवाओं के अधिक इस्तेमाल के कारण बच्चों में मोटापे की आशंका बढ़ सकती है।
फिनलैंड के शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन बच्चों ने दो साल की उम्र से पहले एंटीबायोटिक्स ली थी, उनमें 12 साल की उम्र तक मोटापे (हाई बॉडी मास इंडेक्स) की आशंका 20 प्रतिशत अधिक देखी गई। वहीं जिन बच्चों ने इस उम्र तक कभी भी या फिर एंटीबायोटिक्स दवाओं का बहुत कम इस्तेमाल किया उनमें मोटापे का खतरा कम था।
इतना ही नहीं, दो साल से कम उम्र के जिन बच्चों को एंटीबायोटिक्स दी गई, उनमें पांचवी कक्षा तक पहुंचते-पहुंचते अधिक वजन का जोखिम काफी अधिक था।
गले में खराश-संक्रमण के लिए होता है एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल
आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि अकेले यूके में हर साल 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को एंटीबायोटिक्स के लगभग 4 मिलियन (40 लाख) प्रिस्क्रिप्शन दिए जाते हैं। ये दवाएं आमतौर पर बैक्टीरियल संक्रमण जैसे कि गले में खराश, निमोनिया और गैस्ट्रोएंटेराइटिस, त्वचा और कान के संक्रमण के इलाज के लिए दी जाती हैं।
विशेषज्ञों ने पहले भी एंटीबायोटिक्स की लिमिट तय करने की मांग की थी, इसमें चेतावनी दी गई थी कि अगर इनका अधिक इस्तेमाल किया जाता रहा तो ये दवाएं समय के साथ अपनी शक्ति खो सकती हैं और एक समय ऐसा भी आ सकता है कि इनसे आम संक्रमणों का इलाज करना भी मुश्किल हो सकता है।
अब, फिनिश वैज्ञानिकों का कहना है कि दवा लेने से और भी स्वास्थ्य जोखिम हैं जिसे भी ध्यान में रखना चाहिए।
अध्ययन में सामने आए ये तथ्य
शोधकर्ताओं ने अध्ययन में पाया कि 24 महीने तक के बच्चों को एंटीबायोटिक्स देने से 7 साल की उम्र तक बीएमआई अधिक हो सकता है। यह बाद के जीवन में और भी कई समस्याओं का कारण बन सकती है।
अध्ययन के लिए विशेषज्ञों ने फिनलैंड में 12 वर्ष की आयु तक 33,095 बच्चों के डेटा का विश्लेषण किया। इनमें जीवन के पहले दो वर्षों में एंटीबायोटिक के इस्तेमाल पर नजर रखी गई। शोधकर्ताओं ने गर्भावस्था से पहले, गर्भावस्था के दौरान, जन्म के समय भी एंटीबायोटिक के इस्तेमाल पर भी नजर रखा।
निष्कर्ष में पाया गया कि गर्भावस्था से पहले, गर्भावस्था के दौरान या जन्म के समय एंटीबायोटिक दवा लेने से बच्चे के वजन में कोई अंतर नहीं आया। हालांकि जिन बच्चों ने पहले दो वर्षों में ये दवाएं लीं उनमें मोटापे का जोखिम अधिक था।
डॉक्टर भी ये दवाएं लिखते समय बरतें सावधानी
फिनलैंड स्थित ओउलू विश्वविद्यालय के लेखकों ने डॉक्टरों से आग्रह किया कि वे छोटे बच्चों के लिए एंटीबायोटिक्स लिखते समय सावधानी बरतें, खासकर ऊपरी श्वसन पथ के संक्रमण के दौरान। इसके अलावा मात-पिता को भी खुद से छोटी-छोटी समस्याओं में इन दवाओं के इस्तेमाल को लेकर अलर्ट रहना चाहिए। ये बच्चों को मोटापे का शिकार बना सकती हैं, जिसके कारण भविष्य में उनमें हृदय रोग-डायबिटीज सहित कैंसर जैसी गंभीर और जानलेवा समस्याओं का खतरा बढ़ सकता है।